Lalita Vimee

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औरत, आदमी और छत , भाग 28

28

क्यों होता है मेरे साथ ही हरबार ऐसा, क्या गुनाह है मेरा, मौत क्यों नहीं आ गई मुझे ये सब देखने से पहले।  

उफ़्फ़ मिन्नी ने अपना हाथ दिवार पर दे मारा था,कल पहनी हुई चूडियां टूट ग ई थी ,लहुलुहान हो गया था हाथ ,एकदम सूज गया था,दिल की पीड़ा के साथ उसनें शारीरिक पीड़ा भी बड़ा ली थी। उसको रोते बिलखते सुन सहमी सी सीमा अंदर आई थी।

   भाभी , वीरू की गलती नहीं है, मैं ही गई थी उसके पास।
माफ कर दो भाभी।

"शटअप, मत कहो अपनी गंदी जबान से भाभी, उसकी गलती नहीं है तेरी गलती है,तेरा वो हीरो ही सिखा कर गया होगा तुझे ये सब। खैर कोई बात नहीं अब तुम भी आजाद और तुम्हारा हीरो भी आजाद,मजे करना ,दोनो मिल कर, जा रही हूँ मैं अपने बच्चों को लेकर।"

हाथ  से खून टपक रहा था,चद्दर भी खराब हो गई थी,मिन्नी ने हाथ पर एक दुपट्टा लपेट लिया तथा,और बच्चों के कपड़ेऔर अपने सूट एक बैग में डाल लिए थे।

      "भाभी वीरू बहुत प्यार करता है आपसे,वो मर जायेगा आपके बिना।"

यार तुम कैसी लड़की हो, मेरे पति के साथ हमबिस्तर थी और मुझे ही कह रही हो ,"भाभी " वीरू आपसे बहुत प्यार करता है। वाह डियर वाह, बहुत खूब।

मेरा यकीन करो भाभी।

कितने पैसे दिए हैं उसने तुम्हें ये डायलॉग बोलने के,या फिर से कोई हसीन  लम्हा साथ बिताने का वादा किया है।?

तभी कृष्णा आन्टी अंदर आ ग ई थी।

मिन्नी

मिन्नी की हालत उनसे नहीं देखी गई, लहुलुहान, और पागलों जैसी अवस्था जैसे इस लड़की का सब लुट गया हो।

चले आन्टी,

"मिन्नी बेटा धीरज रखो,ऐसा क्या हुआ है, तुम्हारी सास माँ कहाँ है? वीरेन्द्र कहाँ पर हैं?

आन्टी  आप चलो बाकी बातें बाद में होगी।

कपड़े तो बदल लो बेटा,सब जगह़ खून ही खून है।

इतनी सुबह और  ठन्ड़ में कौन मेरे कपड़े देखेगा,आप बस चलो, वरना मेरे दिमाग की नसे फट जायेंगी। 

आन्टी ने बैग पकड़ लिया था,मिन्नी ने  डिंकी को उठा लिया थी,  डुगू को आन्टी ने पकड़ लिया था, बच्चे कुनमना रहे थे।
सीमा हाथ जोड़ कर खड़ी थी,एकतरफ।

तभी मिन्नी ने फोन पर बोलते हुए कहा था, "दीदी मैं यहाँ से जा रही हूँ , किसी को फोन करके बोल देना, अपना घर संभाल ले, वैसे तो ये मैडम सीमा हैं ही यहाँ पर,पर फिर भी। मैंअपने कपडे और बच्चों के कपड़े लेकर जा रही हूँ, बाकी कुछ नहीं।'

    क्या बकवास कर रही हो मिन्नी सुबह सुबह? वीरू से झगड़ा हुआ है क्या?माँ आभी पहुंचने वाली है रास्ते में है।
आराम  से घर पर बैठो।मिन्नी , सुन रही हो न।

पर फोन कट  हो चुका था।मिन्नी चली ग ई थी।

रूपा दीदी किसी  अंजान  डर  से आंशकित हो गई थी।  उन्होंने वीरेंद्र को फोन किया था।
'
"वीरू कहाँ है तूं और मिन्नी कहाँ है?"

दीदी और बिलखने सा लगा था वीरेंद्र,"आप आ जाओ दीदी, जल्दी आ जाओ।' वरना सब तबाह हो जायेगा।

" हुआ क्या है वीरू?"और तूनें इतनी सुबह शराब क्यों पी रखी है?


"दीदी आप तैयार हो जाओ मैं अभी आपके पास आ रहा हूँ।"

रूपा को स्थिति कुछ ज्यादा गड़बड़ लगी,उन्होंने अपनी सास को बताया कि "भाभी के साथ कुछ समस्या हो ग ई है,तो मुझे अभी जाना पड़ेगा"। 

"कोई बात नहीं चली जाओ बेटी अपने ही अपनो के काम आते हैं।'"

रूपा ने फटाफट कफड़े बदल लिए थे, वो नहीं चाहती थी कि उसकी सास वीरू को इस हालत में देखे।बच्चों को भी उसने उठा कर समझा दिया था।आज पेपर था ।

"मंमी हम नहायेंगे नहीं।"

ठीक है ब्रश करलो और हाथ मुँह धो लो।लडडु और दूध निकाल दिया था,स्कूल बैग  भी तैयार कर दिये थे।यूनिफॉर्म निकाल कर रख दी थी।

"ठीक  है माँ मैं चलती हूँ, सब तैयार है,.इन्हें आटो में बैठा देना।"

"तूं चिंता न कर बहू रोज भी तो इन्हें मैं ही छोड़ कर आती हूँ।"
और तूं इतनी जल्दी क्यों कर रही है, भाई को दूध चाय नहीं पिलायेगी।

नहीं माँ जल्दी पहुंचना जरूरी है।

उसने फिर फोन किया था ,"कहाँ र ह गया वीरू?"

"पाँच मिनिट में पहुंच जाऊँगा दीदी।" 

वो गेट के पास ही खड़ी हो ग ई थी।दिल बहुत डर रहा था, कल तक सब ठीक था।माँ सही कहती है,खुशियों को नजर लग जाती है। तभी उसके पास गाड़ी रूकी थी आकर, बिना देर किए वो गाड़ी में बैठ ग ई थी।

"क्या हुआ भाई"?

"मेरे से बहुत बड़ी गलती हो गई दीदी।"

तभी रूपा का फोन बजा था,उसने देखा माँ का फोन था।

"रूपा बेटी जल्दी आजा, यहाँ पता नहीं क्या हो गया है,मिन्नी दोनों बच्चों को लेकर चली गई है,चद्दर पर खून बिखरा है ये सीमा कुछ भी नही बता.र ही बस रो रही है।'


"माँ चिंता मत कर मैं रास्ते में हूँ जल्दी पहुंच जाऊँगी।"

"जल्दी आजा बेटी, वीरू का भी कोई.पता नहीं है।है भगवान क्या होने वाला है?"

"माँ वीरू मेरे साथ ही है ।हम जल्दी पहुंच जायेंगे।"

सीमा रो रही है,कुछ बता नहीं रही, मिन्नी का ये कहना," ये सीमा मैडम हैं घर पर," ।वीरू का इस समय शराब के नशे में  होना।मिन्नी का बच्चों के साथ घर छोड़ देना।वो भी इतनी सुबह सुबह।कल रात को  नौं बजे उस की मिन्नी से बात हुई थी तब तो सब ठीक था।वीरू भी आकर सो चुका था। मिन्नी बिल्कुल ठीक थी। कह रही थी, "दीदी ये बच्चे जरा भी नहीं सोते दिन में, बहुत थक जाती हूँ।आज तो बहुत ही थक ग ई हूँ।"
पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि जो भी बात है उसमें सीमा और वीरू का ताल्लुक है, किसी छोटी बात पर परेशान होने वालों मे से वीरू नहीं है,और मिन्नी बहुत समझदार और सुलझी हुई लड़की है।घर जोड़ना जानती है तोड़ना नहीं कही वीरू  और सीमा,     ?? ??? उफ़्फ़ क्या  सोच रही हूँ मैं भी।पर  और बात भी क्या है सकती है।

तभी गाड़ी रूकी थी गाड़ी रूकते ही माँ बाहर आ ग ई थी।

"बहू और बालक कित हैं छोरा बताता क्यूँ नहीं?"माँ ने गाड़ी में बैठे बैठे वीरू को झिझोंड़ दिया था।

रूपा ने जैसे स्थिति का आंकलन कर लिया था। माँ अंदर चलो,सब ठीक हो जायेगा।  सब अंदर आ ग ए थे।

सीमा ने रूपा को देख कर रोना शुरू किया ही था कि रूपा ने उसे डांट दिया," हमारे घर में ऐसे अपशकुन  की जरुरत नहीं है तो प्लीज़।"

टूटी हुई ढेरों चूडियां, बैड पर बिखरा खून, रूपा ने वीरेन्द्र का हाथ पकड़ा और कमरे में ले आई, ये क्या है? तूने मारा मिन्नी को।
"नहीं दीदी बिल्कुल भी नहीं कसम ले लो मुझे नहीं पता ये सब कब हुआ? मैने कुछ नहीं देखा, मैं कमरे में आया था तो यहाँ सब नार्मल था।"

"जब तूं कमरे में आया तो सीमा कहाँ थी?"

"वो उस कमरे में थी"। वह अचकचा गया था

पता नहीं क्या हुआ रूपा को जैसे उसने पूरी फिल्म ही देख ली हो।उसका हाथ उठा और वीरेंद्र के मुँह पर चटाक से चला।

वीरेंद्र खामोश रहा था । माँ भी जैसे बहुत कुछ समझ गई थी।
वो बाहर जाने लगी तो रूपा ने रोक दिया था। वो खुद बाहर ग ई थी।

"सीमा , मिन्नी के साथ तूने हाथापाई की है?" 

"नहीं दीदी बिलकुल नहीं, भाभी ने अपना हाथ दिवार पर मारा था।आप चाहें तो.उनसे पूछ लें।" 


सब पता चल जायेगा बेटा,सब्र रख।

वीरेंद्र मिन्नी को फोन लगा रहा था पर फोन आफ था।

माँ इस लड़की को तूनें जो देना  है शगुन इसे दे और विदा कर।

  माँ ने टूटे कदमों से दो सूट और पाँच सो रूपए उसे पकड़ा दिये थे, मिठाई का एक डिब्बा भी दिया था।

"सुन लड़की, रूपा की आवाज़ में असीम नफरत थी, एक घर तो डायन भी छोड़ देती है,पर तूं शायद उस से भी गिरी हुई है,शायद इसी वजह से अपना घर नहीं बसा पाई।और सुन इस बात का जिक्र कहीं बाहर किया कि वीरू की बहू घर छोड़ कर चली गई है तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। तूं जिस तरह़ आई थी उसी तरहं चली जा।"

एक सौ का नोट उसकी तरफ उछाल दिया था, रूपा ये ले किराये के पैसे।

वो बाहर निकल ग ई थी।

"हाँ भाई पार्टी  करें कि तेरा एक और घर तेरी ही गलती की वजह  से उज़ड़ गया, और सुन, एक बात बताऊं मिन्नी जैसी   जह़ीन और नेक लड़की तूझे कभी न हीं मिल  पायेगी।"

"दीदी प्लीज़ कुछ करें उसका फोन भी आफ है।"

तभी कमला आ ग ई थी, कमला सफाई करने लगी तो रूपा ने कहा था, "कमला चाय पिलवा दो जरा।"

कमला ने सब को चाय दी थी।

"बच्चे और दीदी कहाँ हैं अम्मा"?

मिन्नी अपनी चाची के यहाँ गई है, रूपा ने कहा था।

अम्मा खाना बनाऊँ? 

नहीं रहने दे कमला, शाम को देखेंगे, अभी हमें भी कहीं जाना हैं। 
कमला तो चली गई ,पर उसके दिमाग में कुछ खटक कर रह गया था।अम्मा बहुत उदास थी।रूपा दीदी भी बस जैसे कहीं खोई सी थी।साहब  तो बहुत ही परेशान थे, कुछ बोल ही नहीं रहे थे।

"कहाँ जा सकती है मिन्नी?,कहीं हास्टल तो नहीं चली गई?"

दीदी उसनें स्कूल में भी रेजिडेंस अलाट करवाया हुआ है।

"पर वो क्यों"?

"दिमाग खराब है, कहती थी ,मेरा भी कोई ठिकाना होना चाहिए कल को कोई ऐसा हालात बन जाये तो मेरे पास सर छिपाने को जगह़ तो हो।"

" दिमाग उसका नहीं तेरा खराब है,उसने तो सही सोचा ,आज  कम से कम उसके पास एक सुरक्षित छत तो है।वरना कहाँ जाती वो?"

दीदी आप भी ऐसा बोल रही हैं, गलती हो गई माफ कर दो प्लीज़।

"मुझे स्कूल का एड्रेस  दे, मैं जाती हूँ वहाँ।"

"मैं  साथ चलता हूँ दीदी।"

बिल्कुल भी नहीं, एक तो नशे में और    ----तूं रहने दे, मुझे ही जाने दे पहले।

ठीक है मैं छोड़ आता हूँ ,फिर आप फोन कर देना।

रूपा   चौकीदार से पूछ कर मृणाली के क्वार्टर में पहुंच ग ई थी ।आज संडे था त़ो स्कूल की छुट्टी थी। 

रूपा की दस्तक  से मिन्नी ने दरवाजा खोला था। आधे हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी वीरान सा चेहरा।दरवाजा खोल कर पीछे हट गई थी।रूपा अंदर आ ग ई थी।एक पुराना सा डबल बैड,और एक फोल्डिंग पंलग यही फर्नीचर था उस घर में ।

    मिन्नी

  "प्लीज दीदी अपने भाई की वकालत मत करना। मैने उससे हर रिश्ता खत्म कर लिया है।"

"मै यहाँ किसी की वकालत करने नहीं आई, सिर्फ एक बात कहने आई  हुँ।"

"इतना सब होने के बाद भी है आप मुझसे ही कहने आई हैं दी?"

"हाँ मिन्नी ,औरत हूँ न तो औरत को ही समझा सकती हूँ।

मुझे कुछ नहीं समझना दी, जो ठोकर मुझे  मारी है वीरेन ने, वो आप महसूस  नहीं कर सकती।

क्यों मै भाव शून्य हूँ क्या? या मैं औरत नहीं हूँ।


क्योंकि आप का हँसता खेलता परिवार है, जीजू अच्छी जाब में हैं आप से बहुत प्यार करते हैं।

अच्छा, फिर तो तेरा भी हसँता खेलता परिवार है भाभी, तेरे पति का अच्छा बिजनेस है, जमीन जायदाद है, प्यार करने वाली सास है।ननद के साथ भी तुम्हारे दोस्ताना संबध है,और सबसे बड़ी बात, एक दूसरे को तीन साल का समय देकर तुम रिश्ते में आगे बढ़े हो।

पर दी ,"वीरेन मुझे इतना बढ़ा धोखा दिया ,कितना प्यार करती थी  मैं उससे, उसी प्यार की खातिर मैने उस में आये हर बदलाव को झेला,रोज शराब पीने के बाद जैसा व्यवहार
उनका हो जाता है,मेरे प्रति, सारी प्रेग्नेंसी मैने अकेले रहकर निकाल दी। कभी किसी चीज के लिए पैसा नहीं मांगा,उसका सिला क्या मिला मुझे क्या मिला दी?" मिन्नी जोर जोर से रो रही थी।
रूपा ने उसे रोने दिया, वो चाहती थी कि उसके दिलो दिमाग से बोझ कुछ कम हो ताकि किसी भी निर्णय पर पहुंचने से  पहले कोई भी दवाब न रहे उस पर।

पता है मिन्नी ",क्या होता है हम औरतें जिस से भी मोहब्बत करती है न उस के लिए दिलोजान कुर्बान कर देती हैं हम कहती नहीं हैं बस कर देती हैं,और ये जो मर्द होते हैं न ये बातें हमें बहलाने के लिए कह देते हैं और हमें लगता है कि ये तो दिलोजान से मेरा है,पर हकीकत इस से बहुत जुदा होती है डियर, और एक कड़वा सच ओर जीना इ स कड़वी हकीकत के साथ ही पड़ता है।वो सपनों की दुनियां की फिलासफी तो चंद लम्हों की होती है।"

मिन्नी सुबक रही थी," मुझे जीना ही नहीं है दी,मैं मर जाऊँगी।"

    चुप हो जाओ मिन्नी,अच्छा बताओ,  बच्चे कहाँ है ? 

वो आन्टी के पा स हैं,आन्टी ने मालिश वगैरह करके नहला दिया है उनको, और सो ग ए होंगे।

अच्छा मिन्नी घर चलो, "माँ बहुत परेशान और दुखी है।"

"घर तो मुझे जाना ही नहीं दी, मैं तो वीरेन से हर रिश्ता तोड़ कर आई हूँ।वहाँ अब कुछ नहीं है मेरा। "

"रिश्ते कभी नहीं टूटते मिन्नी, कहीं न कहीं कोई न कोई तार अटका ही रहता है, माँ इन बच्चों की दादी है, वीरू इन का बाप है।"

"इनको गर अपने बाप के पास रहना होगा तो मुझे छोड़ना होगा।"

ऐसा नहीं होता डियर मिन्नी भाभी बच्चों को  दोनों की  जरूरत होती है।

तभी आन्टी की घंटी आई थी मिन्नी के फोन पर, बच्चे उठ ग ए हैं बेटा।


आती हूँ आन्टी।।

"दीदी मै बच्चों को ले आती हूँ।"

मिन्नी और  आन्टी बच्चों को लेकर  इधर आ ग ई थी,मिन्नी ने परिचय करवाया था।

" आप लोग बैठो मैं चाय बना कर लाती हूँ।"

"नहीं आन्टी कोई जरूरत नहीं है,आप बैठें।' रूपा ने कहा था।

क्यों जरूरत नहीं है बेटा,आप मिन्नी की ननद हैं और मिन्नी मेरी बेटी है।बैठो आप लोग।

तभी रूपा के फोन पर माँ की घंटी आती है।

बेटी बहू और  बच्चे ठीक हैं।

" हाँ माँ  ठीक है, लो तुम्हारी बहू से बात करलो।"

नमस्ते माँ।

मिन्नी बेटी घर आजा बेटी तेरे और बच्चों के बिना मुझ से नहीं रहा जायेगा।

माँ मैं  नहीं आऊँगी, आप के बेटे का मन अब.मुझसे भर गया है,और मैं बेकद्री होकर नहीं जी सकती।आप चाहें तो अपने बच्चों को रख सकती हैं। सारी माँ, माफ कर देना।

मिन्नी ने फोन रूपा को दे दिया था।

तभी वीरेंद्र का फोन मिन्नी के फोन पर आया था,मिन्नी ने काट
दिया था।उसने तुरंत दीदी के फोन पर किया था," दीदी इससे बात करा दो मेरी प्लीज़"।

रूपा ने फोन उधर बढ़ा दिया था।

मेरी बात तो सुन लो मिन्नी।

क्या सुनू कि हसीन गलती के लम्हें कैसे गुज़रे।

"मिन्नी प्लीज़ मेरी बात सुन लो , वरना मैं.यहीं सुसाइड कर लूंगा, तुम्हारे स्कूल के सामने।"

"
आप  जैसे मानसिक रूप से कमजोर इंसान से और उम्मीद  भी क्या की जा सकती है।"

"ठीक है तो मैं तुम को ट्रेलर  ही दिखाता हूँ ।"

वीरेन प्लीज़।

कुछ बहुत जोर की आवाज़ आई थी,और शोर भी सुनाई दिया  था।
दीदी, वीरेन मिन्नी चीखी तो बच्चों से खेलती रूपा एकदम   चौकन्नी हो ग ई थी। आन्टी तभी चाय लेकर आई थी।

"आन्टी प्लीज़ आप बच्चों के पास बैठे, नीचे जा कर आते है हम।" चलो दीदी जल्दी करो।

"कुछ नहीं होगा मिन्नी हौसंला रखो।"

  स्कूल के गैट के  से थोड़ी दूर वीरेंद्र ने  गाड़ी भिड़ा दी थी। उसके माथे से खून बह रहा था।गाँव के लोगो की मदद से किसी दूसरी गाड़ी म़े हस्पताल लेकर ग ए थे।माथे पर टाँके और हाथ में प्लास्टर बंधा था। दीदी और आन्टी बच्चों को भी ले आये थे।मिन्नी बहुत रो रही थी।

"ये सब मेरी वज़ह से हुआ न दीदी।"

ऐसा कुछ नहीं होता भाभी, "घटनाओं को तो घटना होता है व
कारण भी हम  स्वयं ही होते हैं। इस की वज़ह से तुम और ये मासूम कितने परेशान हूए हैं, वो भी तो देखो न, तुम्हें भी तो चोट लगी है मिन्नी।  खैर चिंता न करो इसे होश आ जायेगा थोड़ी देर में ,शराब का नशा भी तो है इसे, सुबह से पी रहा है, खाली पेट।
मिन्नी ने रोहित को फोन किया था कि मकैनिक को लेकर गाड़ी वहाँ से ले आये।  वीरेंद्र के चैक अप के बाद डाक्टर ने उसे घर ले जाने की इजाजत दे दी थी। कृष्णा आन्टी को भी मिन्नी ने स्कूल वापिस भेज दिया था।

   रूपा दीदी बहुत ही स्नेहिल नजरों से उस मासूम सी मजबूत लड़की को देख रही थी जिस के हाथ में उसके भाई ने अपने भविष्य की डोर सौंप दी थी। कुछ घंटे पहले ही हालात से डर कर  रोने वाली ये   लड़की अब अपने जख्मी पति और मासूम बच्चों के लिए ढाल बनी हुई थी। 

कैब मिन्नी ने ही बुलवाई थी। सब घर पहुंच गए थे।माँ वीरेंद्र की ये हालत देखकर बहुत परेशान हो गई थी, उन्हें भी मिन्नी ने ही संभाला था। बीच  बीच में अपने बच्चों को भी संभाल रही थी। कहाँ से इतना हौंसला लाती है ये लड़की। 

   शाम के तीन बज ग ए थे। रूपा भी घर जाने की सोच रही थी। क्योंकि उन्हें लग रहा था कि अब सब सामान्य है।
माँ को बहुत चिंता थी पर रूपा ने उन्हें समझा दिया था ।
,"मेरे पागल भाई ने अपने जीवन में एक ही फैसला ढंग का किया है माँ और वो है इस लड़की से शादी।" आप देखना ये शादी कबिल ए मिसाल बनेगी।

" मिन्नी मै घर चली जाऊं क्या, सोमवार को बच्चों  के पेपर है और तुम जानती हो,कि बिना मेरे वो कितना पढ़ेंगे।"

  "रूको दीदी मैं इनसे पूछती हूँ कि मिस्त्री गाड़ी कब तक देगा?"


"मैं बस से चली जाऊँ गी मिन्नी।"

"नहीं दी शाम होग ई है और ठंड भी है।"

वीरेंद्र बहुत ही गहरी नींद सोया है, शायद शराब और दवाई दोनों का नशा कायम है।

मिन्नी ने रोहित को फोन किया था, गाड़ी कब तक मिलेगी?

मैम शायद कल या फिर परसों, दरअसल वो सर.का पहचान वाला है, गर सर फोन कर दें तो वो जल्दी भी दे देगा।

"खैर छोड़ो अभी तो वो सो रहे हैं, तुम ऐसा करो दीदी के गाँव के लिए एक टैक्सी ले आओ,और तुम्हें साथ जाना होगा,उन को छोडने।"

"जी मैम  ठीक है।"

मिन्नी ने  वीरेंद्र को जगाया था।

" सुनो दीदी को वापिस पहुंचना है,बच्चों के पेपर हैं, मैने रोहित को बोल कर टैक्सी मंगवाई है और  डाक्टर का सारा बिल भी दीदी ने दिया था, तो पैसों की जरूरत है। कुछ रूपये दो।।"

"अलमारी से निकाल लो ,मेरी जाकेट में पर्स होगा, देख लो  यार।"

मिन्नी उसकी जाकेट की तरफ हाथ करती है ,वीरेंद्र उसका हाथ पकड़ लेता है दूसरे हाथ से," माफ कर दे मिन्नी प्लीज़"।

पर्स निकालने दो ,दीदी को जाना भी है । 

मिन्नी ने पर्स निकाल कर  रूपये गिने  थे।आठ हजार पाँच सौ रूपये थे।तीन हजार तो डाक्टर को दिये थे दीदी ने,और टैक्सी का किराया?
"ये अपने पास रख ले ,जो देना  हो ,दे लेना। यहाँ बहीखाता मत खोल कर खड़ी हो जाओ।और रोहित  को फोन करके एक सिगरेट का पैकिट मंगवा दे।"

मिन्नी ने फोन मिला कर  वीरेंद्र को दे दिया था, खुद कह दो सिगरेट के लिए।

"उसके हाथ पर बंधी पट्टी देख कर वीरेंद्र ने पूछा, क्या लगा है यहाँ पर?"

"कुछ नहीं?"

मैने पूछा ,क्या लगा है यहाँ पर?

टूटे हुए विश्वास की किरचें चुभ ग ई जनाब, बहुत नुकीली थी , खून रिस गया।

तभी दीदी कमरे में आ ग ई थी।

"वीरू मैं निकलती हूँ बच्चों का पेपर है।अपना और मिन्नी का ध्यान रखना। 

मिन्नी माँ का बीपी भी शायद डाऊन चला गया है, तुम्हें कुछ भी कहने की जरूरत नहीं समझती मैं,क्योंकि मुझ से ज्यादा तुम ख्याल रखती हो माँ का।बच्चों का ध्यान रखना। कमला को लगे रहने दो सारा दिन के लिए, वरना ठंड में बिमार हो जाओगी। हाथ पर पट्टी करवा लेना।  

जी दीदी।कहकर मिन्नी बाहर निकल ग ई थी।

आई तो हाथ में मिठाई का डिब्बा और एक पैकिट था।उसने रूपा की तरफ बढ़ा दिया।

ये क्या है मिन्नी?अभी कल ही तो कितना सामान लेकर गई हूँ, अब कुछ न हीं ले जाऊँगी।

बेटियों को कभी खाली हाथ न हीं भेजते दीदी।

रूपा की आँखे गीली हो गई थी।  वो बाहर आ गई थी।


मिन्नी ने बंद मुठ्ठी से  रूपए वीरेंद्र की मुठ्ठी में रख दिये थे,"दीदी को दो'।

'" दीदी , बुला रहें हैं आपको"।

आँखे पोछती  रूपा अंदर आ गई थी। वीरेंद्र ने उनके हाथ में वो रूपये रख दिए थे।

ये क्या है वीरू?,छोटा है तूं मुझसे।

दीदी प्लीज़ ।

पता नहीं क्यों रूपा को लगा कि वीरेंद्र की आँखे गीली हो ग ई हैं।

माँ और मिन्नी कुछ बात कर हु रहे थे कि तभी कमला आई, उसके पीछे ही रोहित भी आ गया था। मिन्नी ने चाय बना कर दीदी को लड्डू और कचोरी खिलाई थी सुबह से सब खाली पेट ही थे । माँ को भी मिन्नी  ने चाय और लड्डू दिए थे ।दवाई भी दी थी।

रोहित वीरेंद्र के पास ही था, मिन्नी ने उसे चाय दी और वीरेंद्र के पास बैठ गई और उसे चाय पीने को कहा। वो उसके लिए पीने का पानी भी लाई थी। वीरेंद्र ने लेटे लेटे ही चाय पी ली थी। रोहित से   टैक्सी का किराया पूछ कर वीरेंद्र ने मिन्नी को कहा था कि पैसे दे दो। 

रूपा ने मिन्नी को अपने पास बुलाया था बाहर,और कहा था ,मिन्नी अब की बार रीति आये तो उसे घर ले आना और मुझे भी बताना, मैं मिलने आऊँ गी।

आप रीति को कैसे जानती हैं?

वीरू ने ही बताया था ,और सुन माँ भी जानती है, पर माँ ने लोगों को ये बताया है कि तेरी बहन की बेटी है और तुझे मंमी कहती है।  जीवन  में आगे बढ़ने के लिए क ई बार शार्टकट तो क ई बार बिना पहचाने और नापसंद रास्तों से भी गुज़रना पड़ता है डियर।

तभी बच्चों के रोने की आवाज़ आई थी, साथ में माँ भी जोर से बोली थी, मिन्नी तूने सुना नहीं क्या गर्म चाय पीते पीते बच्चों को दूध पिला, मुझे ठंड की हरारत लग रही है दोनों में।"
दीदी चली ग ई थी। कमला मिन्नी को चाय देकर खाने की तैयारी कर रही थी।मिन्नी रजाई में बैठ कर बच्चों को दूध पिला रही थी। वीरेंद्र दूसरे कमरे में लेटा सिगरेट पी रहा था।
चाय की गर्म घूट के साथ ही एक प्रश्न मिन्नी के दिमाग में आ रहा था।
क्या  वापिस आक र मैने सही  किया?
क्रमशः
लेखिका, ललिता विम्मी
कहानी, औरत आदमी और छत

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